तर्ज - तेरी याद में जल कर देख लिया अब आग में जल कर देखेंगे ।
कण कण में बसा प्रभु देख रहा
चाहे पुण्य करो चाहे पाप करो ।कोई उसकी नज़र से बच न सका
चाहे पण्य करो चाहे पाप करो ।
कण कण में बसा प्रभु . . . . . . . . . . . १
यह जगत् रचा है ईश्वर ने जीवो के कर्म करने के लिए ।
कुछ कर्म नए करने के लिए जो पहले किए भरने के लिए ।
यह आवागमन का चक्र चला
चाहे पुण्य करो चाहे पाप करो ।
कण कण में बसा प्रभु . . . . . . . . . . . २
इनसान शुभाशुभ कर्म करे अधिकार मिला है ज़माने में ।
कर्मों में स्वतन्त्र बना है मगर परतन्त्र सदा फल पाने में ।
है न्याय प्रभु का बहुत कड़ा
चाहे पुण्य करो चाहे पाप करो ।
कण कण में बसा प्रभु . . . . . . . . . . . ३ .
सब पुण्य का फल तो चाहते हैं पर पुण्य कर्म नहीं करते हैं ।
फल पाप का लोग नहीं चाहते जिस में दिन रात विचरते हैं ।
मिलता है सभी को अपना किया
चाहे पुण्य करो चाहे पाप करो ।
कण कण में बसा प्रभु . . . . . . . . . . . ४ ।
इस दुनियाँ में कृत कर्मों का फल हरगिज़ माफ़ नहीं होता ।
जब तक न यहाँ भुगतान करो यह दामन साफ़ नहीं होता ।
रहे याद ' पथिक ' यह नियम सदा
चाहे पुण्य करो चाहे पाप करो ।
कण कण में बसा प्रभु . . . . . . . . . . . ५
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